*🚩जय श्री सीताराम जी की*🚩
*आप सभी श्रीसीतारामजीके भक्तों को प्रणाम*
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*श्री रामचरित मानस उत्तर काण्ड*
दोहा :
*जासु कृपा कटाच्छु सुर*
*चाहत चितव न सोइ।*
राम पदारबिंद रति*
*करति सुभावहि खोइ॥२४॥*
भावार्थ :
देवता जिनका कृपाकटाक्ष चाहते हैं, परंतु वे उनकी ओर देखती भी नहीं, वे ही लक्ष्मीजी (जानकीजी) अपने (महामहिम) स्वभाव को छोड़कर श्री रामचंद्रजी के चरणारविन्द में प्रीति करती हैं॥२४॥
चौपाई :
*सेवहिं सानकूल सब भाई।*
*राम चरन रति अति अधिकाई॥*
*प्रभु मुख कमल बिलोकत रहहीं।*
*कबहुँ कृपाल हमहि कछु कहहीं॥१॥*
भावार्थ :
सब भाई अनुकूल रहकर उनकी सेवा करते हैं।श्री रामजी के चरणों में उनकी अत्यंत अधिक प्रीति है।वे सदा प्रभु का मुखारविन्द ही देखते रहते हैं कि कृपालु श्री रामजी कभी हमें कुछ सेवा करने को कहें॥१॥
*राम करहिं भ्रातन्ह पर प्रीती।*
*नाना भाँति सिखावहिं नीती॥*
*हरषित रहहिं नगर के लोगा।*
*करहिं सकल सुर दुर्लभ भोगा॥२॥*
भावार्थ :
श्री रामचंद्रजी भी भाइयों पर प्रेम करते हैं और उन्हें नाना प्रकार की नीतियाँ सिखलाते हैं।नगर के लोग हर्षित रहते हैं और सब प्रकार के देवदुर्लभ (देवताओं को भी कठिनता से प्राप्त होने योग्य) भोग भोगते हैं॥२॥
*अहनिसि बिधिहि मनावत रहहीं।*
*श्री रघुबीर चरन रति चहहीं॥*
*दुइ सुत सुंदर सीताँ जाए।*
*लव कुस बेद पुरानन्ह गाए॥३॥*
भावार्थ :
वे दिन-रात ब्रह्माजी को मनाते रहते हैं और (उनसे) श्री रघुवीर के चरणों में प्रीति चाहते हैं।
सीताजी के लव और कुश ये दो पुत्र उत्पन्न हुए, जिनका वेद-पुराणों ने वर्णन किया है॥३॥
*दोउ बिजई बिनई गुन मंदिर।*
*हरि प्रतिबिंब मनहुँ अति सुंदर॥*
*दुइ दुइ सुत सब भ्रातन्ह केरे*।
*भए रूप गुन सील घनेरे॥४*॥
भावार्थ :
वे दोनों ही विजयी (विख्यात योद्धा), नम्र और गुणों के धाम हैं और अत्यंत सुंदर हैं, मानो श्री हरि के प्रतिबिम्ब ही हों।
दो-दो पुत्र सभी भाइयों के हुए, जो बड़े ही सुंदर, गुणवान् और सुशील थे॥४॥
*🚩जय श्री सीताराम जी*🚩
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